साथ - कविता
ये रात अधूरी सी, जिसे पूरी होने को, क़यामत का इंतज़ार है। जो अगर क़यामत न आयी तो, ख़ामोशियों के इस तरफ़ में हूँ, और उस तरफ़ तू है। आया था कभी उम्मीदों का सैलाब, अब तो इस दिल की बंजर जमीन पर, तेरे दीदार की बारिश का इंतज़ार है। जो तेरा अक्स दिख गया अगर मुझे, तो मेरा जीवन खुशियों से गुलज़ार है। न रहेगी फिर कोई ख्वाइश, ये जहां मेरे लिए फिर बेकार है। जो तेरा साथ मिल गया सपने में भी अगर, तो जागने की ज़रूरत फिर क्या है। ...