कलारीपायट्ट - भारत की सबसे पुराणी युद्ध शैली

For English Version - Kalaripayattu


मेरे केरला की यात्रा के दौरान , मुझे मौका मिला कलारी(Kalari) क्षेत्र जाने का। जिन लोगों को कलारीपायट्ट के बारे में नहीं पता है , उनके लिए कलारीपायट्ट(Kalaripayattu) एक प्राचीन युद्ध कला है, जो बहुत कुछ पाश्चात्य मार्शल आर्ट से मिलती जुलती है। 


इसका उदभव केरला में हुआ था। यह 1 तरीके की युद्ध कला है, जिसमें हम सामने वाले विरोधी को अस्त्रों और शस्त्रों से हराने का प्रयास करते हैं। इस तरह की युद्ध कला में हमारी शैली और हमारा तेज होना इस की सबसे बड़ी कुंजी है।  

कलारी का मतलब है युद्ध स्थल और पायट्ट का मतलब है  युद्ध या युद्ध का अभ्यास।  पुराने ग्रंथ हमें बताते हैं कि चाइनीस कुंगफू(Chinese KungFu) की शुरुआत यही पल्लव युवराज ने की थी, जिनका नाम बोधीधर्मा(Bodhidharma) था। अपनी चीन की यात्रा के दौरान उन्होंने इसका प्रदर्शन किया । चीन में यह स्थान शाओलिन टेंपल(Shaolin Temple) के नाम से जग प्रसिद्ध है। यह बात छठी शताब्दी चेरा(Chera) और चोला(Chola) साम्राज्य के दौरान हुई। 

कलरीपायट्ट् केवल लड़ने का तरीका नहीं है अपितु इसमें मुक्का, लात, पकड़ और  शैली, जो अस्त्र और शस्त्र चलाने की कला है उसके साथ में अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना और उसको ठीक करना भी शामिल है। 

केरला में कई कलाक्षेत्र हैं। सबसे ज्यादा मुन्नार(Munnar) और थेकड़ी(Thekaddy)  के पास है। यह सेंटर एक तरीके के युद्धस्थल है। 



यहाँ पर कलाकार, जो की आपस में प्रतिद्वंदी हैं, दोनों आपस में अपनी कलारी शैली(Technique) का प्रदर्शन करते हैं।  यह अपने आप में एक अनोखा अनुभव है। ज्यादातर  प्रदर्शन शाम के समय होते हैं। जो मैंने देखा वह करीब 5:00 बजे था। यह शो करीब करीब एक से डेढ़ घंटे चलते हैं।  

यह कला केरला में निजी कंपनीया(Companies)  चलाती है। जो प्रमोट(Promote) करती हैं  कलारीपायट्ट  को। यह एक तरीका है आज की युवा पीढ़ी को कलारीपायट्ट कला के नजदीक लाने का। 

 इनका टिकेट करीब १५०(150 INR) रूपये से लेकर ३००(300 INR) रुपए  रखा जाता है। जो कि पूरा पैसा वसूल है। 

सबसे पहले सारे कलाकार युद्ध क्षेत्र में आकर भगवान शिव की प्रार्थना करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव, ऋषि अगस्तय और परशुराम जी ने इस युद्ध कला का निर्माण किया था।  इन सभी कलाकारों के पास सालों का अनुभव होता है। इनके युद्ध की शैली बहुत ही सटीक होती है। 


आखरी  खंड में आग से लड़ाई करने का तरीका, मुझे कलाकारों ने दिखाया। डंडो  के दोनों तरफ आग लगाना , रिंग में आग लगाकर चाकुओं के साथ आग में से उछलना और ऐसे ही कई करतब उन्होंने हमें करके दिखाए। इससे पता चलता है कि उन्हें इसको दक्ष करने में कितने साल लगाए। यह वाकई में अपने आप में एक अनोखा अनुभव था। 


अंत में मैं बस यही कहना चाहूंगा कि अगर आप केरला जा रहे हैं तो कम से कम अपना थोड़ा समय कलारीपायट्ट के लिए जरूर निकालें।  यह एक ऐसा अनुभव है जो आप कभी नहीं भूलेंगे और अपने देश की संस्कृति और कला पर आपको गर्व होगा । 



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